उत्तर प्रदेश चुनाव: काशी विश्वनाथ मंदिर के विज्ञापन में नरेंद्र मोदी हैं, योगी की तस्वीर गायब क्यों!

अनंत प्रकाश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के लोकार्पण के लिए वाराणसी पहुंचे. इस मौके पर काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर से लेकर गंगा घाट और बनारस की गलियों में समाचार एजेंसियों, अख़बारों और टीवी चैनलों के तमाम कैमरे मौजूद हैं.इसके साथ ही उनसे बात करने के लिए बनारस में पग – पग पर बीजेपी समर्थक, कार्यकर्ता और नेता मौजूद हैं.
बीजेपी और उत्तर प्रदेश सरकार के लिए ये कार्यक्रम कितना ख़ास है, इसकी बानगी इस बात में मिलती है कि चुनावी मौसम में पहली बार इतने सारे बीजेपी नेता एक जगह पर इकट्ठे हुए हैं.बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर तमाम सांसद और कई राज्यों के मुख्यमंत्री बनारस पहुंचे.लेकिन कैमरों से निकली तस्वीरों में जो एक चीज़ स्पष्ट रूप से नज़र आ रही है, वो ये है कि ‘इस शो के हीरो’ सिर्फ पीएम नरेंद्र मोदी हैं.
सोमवार को छपे तमाम अख़बारों में पहले पेज पर दिए गए विज्ञापनों से लेकर मंदिर परिसर में लगी होर्डिंग में सिर्फ पीएम मोदी नज़र आ रहे हैं.काशी विश्वनाथ मंदिर में आरती से लेकर बनारस के घाटों से लेकर संकरी गलियों में सिर्फ मोदी ही मोदी रहे.हालांकि, कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी कई जगह साथ दिखे. अख़बारों में दिए विज्ञापनों में अंदर के पन्नों पर योगी आदित्यनाथ के नाम से एक बयान भी छपा लेकिन विज्ञापन में उनकी तस्वीर कहीं नहीं दिखी.उत्तर प्रदेश सरकार के एक बड़े अधिकारी एसीएस(होम) अवनीश अवस्थी ने भी इसे योगी सरकार की परियोजना बताया है.समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक़, उन्होंने कहा है कि ये परियोजना साल 2018 में शुरू होकर अब पूरी हो रही है.
बीजेपी की राजनीति को क़रीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान मानते हैं कि इसकी वजह पीएम मोदी की ख़ास छवि है जिसे वह सहेजकर रखना चाहते हैं.
वह कहते हैं, “अगर ये विज्ञापन केंद्र सरकार की ओर से दिया गया है तो इससे ज़ाहिर होता है कि ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इशारे पर हुआ होगा. क्योंकि प्रधानमंत्री नहीं चाहेंगे कि उनके अलावा कोई अन्य शख़्स प्रोजेक्ट किया जाए, ख़ासकर काशी विश्वनाथ धाम के मामले में.
क्योंकि योगी आदित्यनाथ तो भगवाधारी हैं, ऐसे में वह हिंदुत्व के सबसे बड़े दावेदार बन जाते हैं. ऐसे में मुझे लगता है कि इस चुनाव में मोदी जी अपनी हिंदुत्व वाली छवि को मजबूत रखना चाहते हैं. और इसमें वह किसी अन्य का दखल नहीं चाहते हैं.”लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब पीएम मोदी इस तरह के कार्यक्रम की आन-बान-शान बने हों.प्रधान इस तथ्य को रेखांकित करते हुए कहते हैं, “वह ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उन्हें सबसे बड़े हिंदू हृदय सम्राट के रूप में देखा जाए. ये बात सही है कि उनकी एक कल्ट फॉलोइंग है. लोग उन्हें पसंद करते हैं.
वह विकास की बात भी करते हैं. लेकिन अब उन्हें लगने लगा है कि हिंदू हृदय सम्राट की छवि से ही नैय्या पार हो सकती है. ऐसे में वह यह दिखाना चाहते हैं कि उनसे बड़ा हिंदू हृदय सम्राट कोई नहीं हो सकता.मुझे लगता है कि कुछ हद तक योगी आदित्यनाथ की छवि भी ज़िम्मेदार है. उन्हें लगता है कि योगी आदित्यनाथ इस छवि को लेकर प्रतिस्पर्धा में हैं. और वह ये बर्दाश्त नहीं कर सकते कि इस मामले में उनसे कोई प्रतिस्पर्धा करने का प्रयास करे.”
शरत प्रधान मानते हैं कि फिलहाल योगी आदित्यनाथ इस मामले में पीएम मोदी को चुनौती नहीं दे सकते.वह कहते हैं, “योगी आदित्यनाथ फिलहाल किसी तरह की चुनौती देने की स्थिति में नहीं हैं. लेकिन योगी आदित्यनाथ की छवि विकसित हो रही है. और आने वाले दिनों में साल 2024 के बाद उनके (पीएम मोदी) लिए दिक्कत हो सकती है.
क्योंकि अगर हिंदू – मुसलमान करके ही चुनाव जीतने हैं तो इसमें योगी, मोदी जी से आगे निकलने की कोशिश करेंगे. और योगी आदित्यनाथ बहुत महत्वाकांक्षी हैं. भगवा पहनते हैं और मोदी जी के पदचिह्नों पर चल रहे हैं. ऐसे में अभी तो नहीं लेकिन आगे चलकर चुनौती बन सकते हैं. इसलिए मोदी अभी से उन्हें प्रतिस्पर्धा से दूर रखना चाहते हैं.”
ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी ने इतनी जल्दबाज़ी में इस कार्यक्रम का आयोजन क्यों किया. इस सवाल का जवाब तो अमित शाह, जेपी नड्डा या दूसरे नेता ही दे सकते हैं.लेकिन इस बात के संकेत मिलते हैं कि बीजेपी इस कार्यक्रम का इस्तेमाल यूपी चुनाव में करेगी.यूपी की राजनीति को गहराई से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र मानते हैं कि जिस स्तर पर इस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है और जिसके केंद्र में पीएम मोदी हैं, वह बताता है कि बीजेपी यूपी चुनाव को लेकर अपनी रणनीति बदल रही है.
वो दावा करते हैं, “अभी उत्तर प्रदेश में चुनाव को लेकर जो स्थिति है, उसमें बीजेपी चुनाव जीतती हुई नज़र नहीं आ रही है. क्योंकि योगी आदित्यनाथ एक हिंदू नेता थे. लेकिन उनकी या उनके आसपास वालों की ग़लती की वजह से वह अब एक जाति के नेता में बन गए हैं.”
मिश्र अपनी बात को विस्तार देते हुए कहते हैं, “सरकार विकास के दावे चाहें जितने कर रही हो लेकिन ऐसा कोई विकास का काम नहीं किया है जिससे सरकार के प्रति लोगों में सकारात्मक असर हो.
इसके बाद यूपी सरकार के 95 फीसदी मंत्रियों ने सार्वजनिक कार्य नहीं किया. ऐसे में नरेंद्र मोदी को ये ऑवरऑल फ़ीडबैक मिला होगा कि इस सरकार के कामकाज के बूते पर जीतना मुश्किल है. ऐसी स्थिति में मुझे लगता है कि वह उत्तर प्रदेश के चुनाव को किसी तरह जीतना चाहते हैं. और जीतने के लिए वह अपना सबकुछ दांव पर लगाना चाहते हैं.
क्योंकि जब नरेंद्र मोदी अपने आपको दांव पर लगाएंगे तो जातिगत राजनीति की सीमाएं टूट जाएंगी. फिर चुनाव बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक हो जाएगा. और ऐसी स्थिति में बीजेपी हमेशा जीतती है. जब भी जातिगत राजनीति होती है तो क्षेत्रीय पार्टियां जीतती हैं.
अभी पिछले दिनों अखिलेश यादव ने अच्छी रैलियां कीं जिनमें अच्छी भीड़ आ रही है. मुझे लगता है कि ऐसे में नरेंद्र मोदी ने ये तय किया होगा कि वह ये चुनाव अपने दम पर लड़ेंगे. क्योंकि उनके विधायक भी यही चाहते हैं.”
लेकिन क्या इतने अख़बारों में छपे विज्ञापनों में से योगी की ग़ैर-मौजूदगी को एक संयोग माना जाता सकता है?
शरत प्रधान कहते हैं, “इसे एक संयोग सिर्फ वही मान सकता है जो कि अंध भक्त की श्रेणी में आता हो. इस बात के स्पष्ट मायने हैं और पीएम मोदी इसके लिए जाने भी जाते हैं. उन्हें फ्रेम साझा करना पसंद नहीं है.”
वहीं, योगेश मिश्र भी कहते हैं कि इसे संयोग नहीं माना जा सकता है. “क्योंकि गुजरात से लेकर आज काशी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र का अंदाज़ यही रहा है. उनके फ्रेम में कभी कोई दूसरा आदमी नहीं आता है. और काशी विश्वनाथ मंदिर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का कोई योगदान नहीं है. और पीएम मोदी ये बताना चाहते हैं कि जो कुछ हैं, वही हैं.
और अब ये स्पष्ट होता जा रहा है कि ये चुनाव अब मोदी के नाम पर लड़ा जाएगा. इससे पहले इसके संकेत जेवर रैली में मिले थे जहां पीएम मोदी ने भाषण देते हुए एक बार भी मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का ज़िक्र नहीं किया. उनकी तारीफ़ नहीं की. उन्होंने बीजेपी सरकार की बात की. लेकिन मुख्यमंत्री की बात नहीं की.
इससे पहले एक्सप्रेस वे का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें योगी आदित्यनाथ पीएम मोदी की गाड़ी के पीछे पैदल चलते हुए दिख रहे थे. ये सारे संकेत हैं.
इससे पहले अयोध्या में भी हमें यही दिखा कि जब वह शिलान्यास कर रहे होते हैं तो तमाम कैमरों के बीच उनके सिवा कोई दिखाई नहीं देता. तस्वीरों से लेकर कवरेज़ में सिर्फ वही दिखाई देते हैं. ऐसे में ये उनका स्टाइल भी है और वह जो काम कर रहे हैं, उसका श्रेय किसी को क्यों लेने दें.”(बीबीसी से साभार )

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